scorecardresearch
 

IIT BHU की नई रिसर्च- अब बैक्टीरिया करेगा पानी से जहरीले तत्वों को अलग, कम होंगी ये बीमारियां

अब बैक्टीरिया पानी से हानिकारक जहरीले तत्वों को अलग करेगा. आईआईटी (बीएचयू) वैज्ञानिकों का दावा है कि इस खोज से कैंसर, गुर्दे, यकृत की खराबी और बांझपन जैसी बीमारियों में कमी आएगी.

Advertisement
X
IIT BHU की रिसर्च में शामिल वैज्ञानिक
IIT BHU की रिसर्च में शामिल वैज्ञानिक
स्टोरी हाइलाइट्स
  • कम होंगे कैंसर, गुर्दे और यकृत की खराबी, बांझपन के केस
  • यह नया बैक्टीरियल स्ट्रेन हेक्सावलेंट क्रोमियम की बड़ी मात्रा को सहन करने में सक्षम

अब बैक्टीरिया दिलायेगा दूषित और जहरीले पानी से मुक्ति... सुनने में भले ही ये अजीब लगे लेकिन आइआईटी बीएचयू के वैज्ञानिकों ने इसे सच कर दिखाया है. स्कूल ऑफ बायोकेमिकल इंजीनियरिंग, आईआईटी (बीएचयू), वाराणसी के शोधकर्ता डॉ. विशाल मिश्रा और उनके पीएचडी छात्र वीर सिंह ने दूषित साइट से नए जीवाणु स्ट्रेन को अलग किया है जो अपशिष्ट जल से जहरीले हेक्सावलेंट क्रोमियम को हटा सकता है. हेक्सावलेंट क्रोमियम मानव में कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं जैसे कैंसर, गुर्दे और यकृत की खराबी, बांझपन के लिए जिम्मेदार एक भारी धातु आयन है. 

जीवाणु या बैक्टीरिया का नाम सुनते ही मन में डर बैठ जाता है, लेकिन आपकों जानकर हैरानी होगी कि सभी जीवाणु नुकसानदायक नहीं होते. कई जीवाणु फायदेमंद और इंसानों के लिए जरूरत के भी होते है. ऐसे ही एक फायदेमंद जीवाणु को स्कूल ऑफ बायोकेमिकल इंजीनियरिंग, आईआईटी (बीएचयू), वाराणसी के शोधकर्ता डॉ. विशाल मिश्रा और उनके पीएचडी छात्र वीर सिंह ने खोज निकाला है. 

आगे और जानकारी देते हुए डॉ. विशाल मिश्रा ने बताया कि यह नया बैक्टीरियल स्ट्रेन हेक्सावलेंट क्रोमियम की बड़ी मात्रा को सहन करने में सक्षम है. यह अन्य पारंपरिक तरीकों की तुलना में अपशिष्ट जल से हेक्सावलेंट क्रोमियम को हटाने के लिए बहुत प्रभावी है.

Advertisement

इस बैक्टीरियल स्ट्रेन ने जलीय माध्यम वाले क्रोमियम CR(VI) में तेजी से विकास दर दिखाई और जल उपचार प्रक्रिया के बाद आसानी से जलीय माध्यम से अलग हो गए. यह जीवाणु स्ट्रेन बहुत फायदेमंद है क्योंकि हटाने के बाद अतिरिक्त पृथक्करण प्रक्रिया की आवश्यकता नहीं होती है. 

बैक्टीरियल मध्यस्थता अपशिष्ट जल उपचार प्रक्रिया बहुत सस्ती और गैर-विषाक्त है क्योंकि इसमें महंगे उपकरणों और रसायनों की भागीदारी नहीं है. शोधकर्ताओं ने औद्योगिक और सिंथेटिक अपशिष्ट जल में इस जीवाणु तनाव की हेक्सावलेंट क्रोमियम हटाने की क्षमता का परीक्षण किया है और संतोषजनक परिणाम पाए हैं. शोधकर्ताओं ने जीवाणु कोशिकाओं में हेक्सावलेंट क्रोमियम हटाने की व्यवस्था का भी परीक्षण किया. 

कैसे काम करेगा बैक्टीरिया

उन्होंने यह भी बताया कि अनुसंधान से यह ज्ञात हुआ कि बैक्टीरिया कोशिकाओं में सक्रिय कई भारी धातु सहिष्णुता तंत्र सक्रिय होते हैं जब जीवाणु कोशिकाओं को विकास माध्यम वाले हेक्सावलेंट क्रोमियम में उगाया जाता है. डॉ. विशाल मिश्रा और उनके छात्र वीर सिंह ने बताया कि यह शोध कार्य प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल “जर्नल ऑफ एनवायर्नमेंटल केमिकल इंजीनियरिंग (इम्पैक्ट फैक्टर 5.9) में पहले ही प्रकाशित हो चुका है. यह शोध पानी से हेक्सावलेंट क्रोमियम जैसे जहरीले धातु आयनों को हटाने के लिए लागत प्रभावी और पर्यावरण के अनुकूल तरीके पर केंद्रित है. 

बैक्टीरिया आसानी से उगाए जा सकते हैं और प्रभावी तरीके से हेक्सावलेंट क्रोमियम को हटा सकते हैं. कल्चरल बैक्टीरियल स्ट्रेन को नियोजित करने के लिए किसी कुशल श्रम की आवश्यकता नहीं होती है. यह बहुत सस्ता, गैर-विषाक्त और उपयोग में आसान/रोजगार में आसान है. इसके अलावा, उपयोग के बाद पृथक्करण के लिए बड़े ऊर्जा इनपुट की आवश्यकता नहीं होती है और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की निर्वहन सीमा तक हेक्सावलेंट क्रोमियम को हटा देता है. 

पानी के कारण होती हैं कई लाख मौतें 

मालूम हो कि विकासशील देशों में जल जनित रोग सबसे बड़ी समस्या है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार हर साल 3.4 मिलियन लोग, ज्यादातर बच्चे, पानी से संबंधित बीमारियों से मर जाते हैं. संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) के आकलन के अनुसार, बैक्टीरिया से दूषित पानी के सेवन से हर दिन 4000 बच्चे मर जाते हैं.

डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट है कि 2.6 बिलियन से अधिक लोगों के पास स्वच्छ पानी तक पहुंच नहीं है, जो सालाना लगभग 2.2 मिलियन मौतों के लिए जिम्मेदार है, जिनमें से 1.4 मिलियन बच्चे हैं. पानी की गुणवत्ता में सुधार से वैश्विक जल जनित बीमारियों को कम किया जा सकता है. 

Advertisement

हेक्सावलेंट क्रोमियम जैसी भारी धातुओं से होने वाला कैंसर दुनिया भर में एक गंभीर समस्या है. भारत और चीन जैसे विकासशील देश भारी धातु संदूषण के प्रति बहुत संवेदनशील हैं. मानव सेवन हेक्सावलेंट क्रोमियम मुख्य रूप से त्वचा के संपर्क, दूषित पानी के सेवन या खाद्य उत्पाद में संदूषण के माध्यम से होता है. हेक्सावलेंट क्रोमियम न केवल मानव शरीर में सामान्य बीमारियों का कारण बनता है बल्कि इसके परिणामस्वरूप कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी भी होती है. 
 
जल संसाधन मंत्रालय की रिपोर्ट में कहा गया है कि बड़ी संख्या में भारतीय आबादी जहरीली भारी धातुओं के घातक स्तर के साथ पानी पीती है, 21 राज्यों के 153 जिलों में लगभग 239 मिलियन लोग ऐसा पानी पीते हैं जिसमें अस्वीकार्य रूप से उच्च स्तर के जहरीले धातु आयन होते हैं. डब्ल्यूएचओ ने चेतावनी दी है कि पीबी, सीआर (Cr), सीडी जैसी जहरीली भारी धातुओं वाले लंबे समय तक पानी पीने से त्वचा, पित्ताशय, गुर्दे या फेफड़ों का कैंसर हो सकता है. 

 

Advertisement
Advertisement